7 मार्च 2020

जन्म और मृत्यु

ये दो माँ के बीच की जंग की छोटी सी कहानी है , जो अपने बच्चों के लिए मृत्यु को भी चुनौती दे देती है। जिसे मैंने कविता के माध्यम से आप सबके सामने प्रस्तुत किया है। उम्मीद है , आप तमाम मित्र कुछ त्रुटियों की गणना कर मुझे बेहतर लिखने का सुझाब देंगे, और आशीर्वाद देंगे।



लोग अक्सर ये कहतें हैं
कि अब तो मुझे भी मौत मिले
क्या गिला है ज़िन्दगी से 
जो ये कर गुज़रे

जरा दर्द दवी हो सीने से तो.. इज़हार करो
बड़े बेग़ैरत की तरह जीते हो
खुद से कम से कम बात तो करो
और फिर भी न समझ में आये तो 
सुनो एक बात कहता हूँ
कोख़ में पल रही जीवन का
उसका तो ख़्याल करो

कभी देखा है चिड़ियों को 
दाना चुगते हुए
वो लाल सी कोमल चोंचों से
पत्थर कुरेदते मूंदे मन से
क्या दर्द नही होती होगी उसे 
या वो ऐसे ही व्यर्थ बस करती है
जब जिह्वा का स्वाद न मिले तो
वो सबकुछ पान वो करती है

और भी यकीन ना हो तो
फिर एक और बात सुनाता हूँ
जँगल में जीने वालों की
उसकी व्यथा सुनाता हूँ

एक शाम की बात थी ऐसी
दो माता थी अड़ी हुई
एक बच्चे को जननी थी
तो दूसरे को भूख की चिंता थी
है बात... ये दो जानवरों की
एक मेमना थी, तो दूजी शेरनी थी
सुनो आगे कि बात फिर से
मैं जीवन का मूल्य बताता हूँ

है मेमना टीले पर टीके हुए
प्रसव पीड़ा से व्याकुल हुए
दर्द पीड़ा उसे ऐसी थी 
किनारो की भी ख़बर न थी
है रात अभी बस होने को 
है सहमी माता दुबकी हुई 
भूख की पीड़ा खोने को
सहसा वहाँ कोई आ जाता है
खुनों की दाँत दिखाता है
चार कदम वो हट न सके 
वस सुबुक के पीड़ा सहती है
क्या कहूँ हे ईश्वर तुमसे 
ये कैसी लीला रचती है

है जो भूख से बिचलित शाबक उसके
उसकी मोह ही खिंचती है
वरना ये पाप किस मुख से
कोई माता अपने ऊपर ले सकती है
है नजर मेमने पर 
कब बच्चे वो जनती है
फिर उसका ही मैं ग्रास करू
ये सोच के वो बस बैठी रहती है
शेरनी के बच्चे है चीख रहे 
बस उसकी दर्द वो समझती है
क्या जन्म की पीड़ा उसे दिख न रहा
जो आँख गड़ाए बैठी है

सहसा एक बरसात हुई 
कोमल दर्द को आराम हुई
मेमने की दर्द को आराम मिला
फ़िर चार बच्चे को जन्म मिला

अब खुशी का अवसर मिला उसको
या गम का ये श्राप मिला
है संग्राम बड़ा ही अद्धभुत ये
कैसा ये जन्म-मृत्यु का संयोग मिला

जो होना है वो होने दो
चलो अपनी मौत ही आने दो
मेरे भी छोटे बच्चे है
जैसे उसको ये आभास मिला
दे दूंगी अपनी जान भी तो
पर उसे ना जिंदा छोडूंगी
तेरे भी नन्हे बच्चे है
उससे भी माँ की ममता छिनूँगी

आ जाओ अब समर में 
अब प्रखर युद्ध भी हो
जन्म मरण का भेद जो हो
उसका अब न भेद भी हो

पहला वार भी मारूंगी
तेरे कातिर नैनो को चिरूँगी
है भूख अगर तो आ जाओ
पहले मेरा तुम स्वाद बताओ
और भूख अगर कुछ ज्यादा हो
तो अपनी जान की दांव लगाओ

लो अब संग्राम ये सुरु हुआ
शेरनी को अब ललकार हुआ
पंजों से उसने चीर प्रहार किया
पर सहसा मेमना ने स्वयं बचाव किया
अब कैसा ये संयोग हुआ
दोनों की दिशा बदल हुआ
है गोद में जिसके शाबक है
और उस ओर फिर ये क्रोध हुआ
किनारों पर जा टिकी शेरनी थी
पंजो के नीचे मेमना के बच्चे थी
तनिक डिगा उसका ये भूख प्रखर 
या मन को ममता खिंची थी
उसने एक सवाल किया 
चलो तेरा न मैं ग्रास करूँ
कुछ इसका ही स्वाद चखु
आज भर के लिए ये काफ़ी
कल दूसरे का फ़िर आहार करू
सुन कर मेमना बड़ी क्रुद्ध हुई
तेजी से दौडी और प्रहार करी
किनारों से था वो टीका हुआ 
सहसा उसका पैर फिसला
और तन को आत्मा लाचार हुआ
चलो उसका अब संघार हुआ
चलो उसका अब संघार हुआ

है बात समझ आयी हो तुम्हें
सोच के बताना अपने मन को
है जन्म बड़ा या मृत्यु भी
ये खुद तुम अब विचार करो

जाते जाते ये कहता हूँ
कुछ और न तुमसे कहता हूँ
है जीवन बड़ी और निराली
फिर क्यूँ व्यर्थ तूने आहुति दे डाली
फिर क्यूँ व्यर्थ तूने आहुति दे डाली
अपने जीवन पर विचार करो
अपने जीवन पर विचार करो

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