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21 मई 2020

मेरी कलम

मेरी कलम को बड़ा गुरूर हैं,
कि जो यह लिखती है,बेहद सत्य होता हैं।
और जैसा इसके सोचने के पीछे का गणित है,
वैसा ही है इसका जीवन,
मेरी कलम द्वारा लिखी गई कविताएं क्षणिक है।
मेरी कलम का मानना है,
की तरलता बेहद शांत होती है,
इससे जुड़ी हर चीज़ मन को शांति देती हैं,
पर मेरी कविताओं के जीवन जितना ही हैं इसका वहम,
जो अब खत्म हो चुका हैं।
कुछ बचा है तो सिर्फ खोखलापन(हमारे संविधान जैसा),
क्योंकि गई सुबह देखा है इसने तरलता का घिनौना रूप,
ओर सीवरेज पाइप लाइनों में मर रही दलितो की रूह।
इस रूह को अनसुना किया जा सकता था,
पर वे हज़ारों रूहे जो हर साल पितृसत्ता के बोझ तले दबकर मर जाती है,
उनकी आह! की आवाज़ ने मेरी कलम को बहरा कर दिया।
क्योंकि आज ही इसने सुनी है कई कहानियां,
जो सिर्फ कहानियां नहीं, इस देश का घिनौना सच हैं,
सच जो छिपायें छिप नही रहा,
की बेहतर शिक्षा और आरक्षण इसका इलाज नही हैं, 
क्योंकि कहानियां ऐसी भी सुनी है,
जिसमे डॉक्टरेट की डिग्रीयां लेकर भी कई लोग इन्हीं नालियों में मरते हैं,
क्योंकि जातिवाद के हथौड़े ने, इनके जुनून की रीढ़ तोड़ दी हैं,
जिसके कारण झुक गया है पूरा दलित समाज।
राजू अपनी माशूका को अपने काम के बारे में नहीं बता सकता,
वह शर्मा रहा हैं,
क्योंकि वह यह जानता है की हया को हाय! में बदलते देर नहीं लगती।
मेरी कलम भी इनकी मदद करने को तत्पर थी।
यह लिख देना चाहती थी वह कविता,
जिसकी गूंज से संविधान बहरा हो जाए,
औऱ मार दे इस अंधे कानून को,
पर मेरी कविता डर गयी,
की अगर वह इन सीवरेज के पाइपों मे पहुंची,
तो इन पाइपों में बने जहरीले गैस के गुब्बार से वह मर जाएगी,
औऱ जिंदा बच भी गयी,
तो मैली हो जाएगी।

20 मई 2020

नफरत करना मुझको सीखा दो

इश्क करना तो हम खुद-ब-खुद सीख गये,
कोई नफरत करना सीखा दो,
याद तो वो हर पल रहते है
कोई भूलना बता दो,
कुछ भी बोलूं तो नाम जुबां पे उसका ही आ जाता है,
नाम लिए बिन उसका कोई मेरे घर का पता बता दो,
अब ये रातें इतनी लम्बी होंगी,
इन दो आँखों से कितना चाँद निहारूंगां
मै दिन मे भी सोता नही,
नींद आती है कैसे कोई बस इतना मुझको बता दो,
मै 'हो' कहूं तो 'होंठ' उसके,
मै 'आ' कहूं तो 'आँखें' उसकी,
मै 'गा' कहूं तो 'गाल' उसके,
मै 'बा' कहूं तो बाल उसके,
मै 'स' कहूं तो सूरत उसकी,
मै क्या बोलूं जिसमें वो ना आये,
कोई एैसा अक्षर मुझको बता दो।
इश्क करना तो सिख गये,
कोई नफरत करना मुझको सीखा दो।

*कोरोना का असामान्य समय*

सहमी सी ये धड़कने , हवा सी ये बातें ,
काले आतंक में बीतती हुई ये रातें।
स्वच्छ्ता हथियार ले खड़े हम हर दिन,
हम चले , हम चले इसे हराने हर दिन।
सहमी सी ये धड़कने , हवा सी ये बातें ,
काले आतंक में बीतती हुई ये रातें।
इस चुप्पी के बीच आ ले चलूँ तुझे एक ऐसे मोड़ पर ,
जहाँ हैं उम्मीदों के ये पन्ने, आ ले चलूँ तुझे इस मोड़ पर।
सहमी सी ये हवाएँ , बीतती सी ये रातें ,
मकां के भीतर होती एक सी बातें।
सीख गई हंसना ये आंखे,
नमी के बीच आंखो देख नज़र मिलाती ये आंखे ।

|निर्भया|

आज तुझे इंसाफ दे दिया,
अब जब तू आयेगी एक नई दूनिया दी जायेगी,
'निर्भया' तू अबकी बार सच मे निर्भय होकर जी पायेगी।

ना कसने देगें तुझपे फब्तियां,
ना कोई नजर गंदी उठ पायेगी,
खौफ बना लो दिल मे एै दरिंदों,
नापाक इरादे जब-जब होंगे तेरे,
तुझको फांसी दी जायेगी।

एै माँ ओ सुन लो तुम,
ना बेटी को अपने बस 'गौरी' बनाना तुम,
उसको चंडी जैसा संहार सिखाना तुम,
आदिशक्ति का रुप है लेना,
दुष्टों से भिड़ जाना तुम।

होगा देश ना शर्मसार अब,
कहीं उठे उंगली भी जब बिंटिया रानी पर
बन के श्मशान के शंकर लड़ जाना तुम,
अपनी ही बेटी है या किसी और कि कही सोच मे ना पड़ जाना तुम।

निर्भया हमें तुम माफ करो
तुझको बचा न सके हम,
हो सके तो फिर से बेटी बन के आना तुम।

वो आएगा....

वो आएगा....
तुम्हें क्या- क्या समझाएगा...
शायद उसकी बातें हम में से,किसी को समझ नहीं आएगा..
वह कभी तुम्हें हिंदू ,तो कभी मुस्लिम बनाएगा
वह समाज का आईना तुमसे छुपाएगा.
हम में से शायद ही उस आईने को कोई ढूंढ पाएगा.
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा..
उसकी बातें हम में से किसी को समझ नहीं आएगा.....

चुनावी हवा में.
वो तुम्हें ऐसे- ऐसे ख्वाब दिखाएगा.
कभी बाबू , तो कभी भैया बनाएगा.
कभी हाथ , तो कभी गले लगाएगा
कभी लोग तो कभी लालच दिखाएगा
वह तुम्हें इस बात का बार-बार एहसास दिलाएगा
तुम हिंदू हो या कि मुस्लिम
या ऊंची जाति के या छोटी जाति के
हमारे तुम्हारे बीच वह एक ऐसा प्रचंड दिवार बनाएगा
जो कि सालों-साल तक टूट नहीं पाएगा
जब हम तुम सारे बट जाएंगे
तो उस दीवार को अपनी सीढ़ियां बनाएगा 
न जाने उस सीढ़ी से वह कहां पहुंच जाएगा 
उसके बाद, वो बरसाती मेंढक की तरह अगले बरसात में ही नजर आएगा..
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा......

फिर कहां गया हिंदू, मुस्लिम, छोटा ,बड़ा ,गरीब.
समाज का आईना तुम्हें यूं ही टूटा हुआ, बिखरा पड़ा समाज के हर मोड़ पर मिल जाएगा 
वह हिंदू मुस्लिम करने वाला 
हम गरीबों की बातें करने वाला विकास की बातें करने वाला 
वह बड़ी-बड़ी तकरीरवाला 
5 साल के लिए ऐसी शीत निंद्रा में जाएगा 
हमारे दुख-दर्द आवाज-चीखे शायद ही उसे जगा पायेगा.
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा.....

अब तो उसे उसकी आलीशान महल प्यारी है,
अब तो ऐसा लगता है जैसे उसकी कुछ नहीं जिम्मेदारी है,
अब विकास के नाम पर बस उसकी शीत निंद्रा ही प्यारी है,
अब कहां गया बाबू ,कहां गया भैया,अब तो उसके लिए सबसे बड़ा हो गया रुपैया.
यह बरसाती मेंढक अगले बरसात में फिर आएगा,इस बार नया जाल बुन कर लाएगा
 धोखे से हुए विकास को ,वह ढोल नगाड़े बजाकर सुनाएगा
इस बार वो ऐसा जहर लाएगा
जो कि हमारे भाई चारे में फिर से आग लगाएगा
5 साल पुरानी जख्मी फिर ताजा कर जाएगा
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा शायद उसकी बातें हम में से किसी को समझ नहीं आएगा