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21 मई 2020

मेरी कलम

मेरी कलम को बड़ा गुरूर हैं,
कि जो यह लिखती है,बेहद सत्य होता हैं।
और जैसा इसके सोचने के पीछे का गणित है,
वैसा ही है इसका जीवन,
मेरी कलम द्वारा लिखी गई कविताएं क्षणिक है।
मेरी कलम का मानना है,
की तरलता बेहद शांत होती है,
इससे जुड़ी हर चीज़ मन को शांति देती हैं,
पर मेरी कविताओं के जीवन जितना ही हैं इसका वहम,
जो अब खत्म हो चुका हैं।
कुछ बचा है तो सिर्फ खोखलापन(हमारे संविधान जैसा),
क्योंकि गई सुबह देखा है इसने तरलता का घिनौना रूप,
ओर सीवरेज पाइप लाइनों में मर रही दलितो की रूह।
इस रूह को अनसुना किया जा सकता था,
पर वे हज़ारों रूहे जो हर साल पितृसत्ता के बोझ तले दबकर मर जाती है,
उनकी आह! की आवाज़ ने मेरी कलम को बहरा कर दिया।
क्योंकि आज ही इसने सुनी है कई कहानियां,
जो सिर्फ कहानियां नहीं, इस देश का घिनौना सच हैं,
सच जो छिपायें छिप नही रहा,
की बेहतर शिक्षा और आरक्षण इसका इलाज नही हैं, 
क्योंकि कहानियां ऐसी भी सुनी है,
जिसमे डॉक्टरेट की डिग्रीयां लेकर भी कई लोग इन्हीं नालियों में मरते हैं,
क्योंकि जातिवाद के हथौड़े ने, इनके जुनून की रीढ़ तोड़ दी हैं,
जिसके कारण झुक गया है पूरा दलित समाज।
राजू अपनी माशूका को अपने काम के बारे में नहीं बता सकता,
वह शर्मा रहा हैं,
क्योंकि वह यह जानता है की हया को हाय! में बदलते देर नहीं लगती।
मेरी कलम भी इनकी मदद करने को तत्पर थी।
यह लिख देना चाहती थी वह कविता,
जिसकी गूंज से संविधान बहरा हो जाए,
औऱ मार दे इस अंधे कानून को,
पर मेरी कविता डर गयी,
की अगर वह इन सीवरेज के पाइपों मे पहुंची,
तो इन पाइपों में बने जहरीले गैस के गुब्बार से वह मर जाएगी,
औऱ जिंदा बच भी गयी,
तो मैली हो जाएगी।

20 मई 2020

नफरत करना मुझको सीखा दो

इश्क करना तो हम खुद-ब-खुद सीख गये,
कोई नफरत करना सीखा दो,
याद तो वो हर पल रहते है
कोई भूलना बता दो,
कुछ भी बोलूं तो नाम जुबां पे उसका ही आ जाता है,
नाम लिए बिन उसका कोई मेरे घर का पता बता दो,
अब ये रातें इतनी लम्बी होंगी,
इन दो आँखों से कितना चाँद निहारूंगां
मै दिन मे भी सोता नही,
नींद आती है कैसे कोई बस इतना मुझको बता दो,
मै 'हो' कहूं तो 'होंठ' उसके,
मै 'आ' कहूं तो 'आँखें' उसकी,
मै 'गा' कहूं तो 'गाल' उसके,
मै 'बा' कहूं तो बाल उसके,
मै 'स' कहूं तो सूरत उसकी,
मै क्या बोलूं जिसमें वो ना आये,
कोई एैसा अक्षर मुझको बता दो।
इश्क करना तो सिख गये,
कोई नफरत करना मुझको सीखा दो।

*कोरोना का असामान्य समय*

सहमी सी ये धड़कने , हवा सी ये बातें ,
काले आतंक में बीतती हुई ये रातें।
स्वच्छ्ता हथियार ले खड़े हम हर दिन,
हम चले , हम चले इसे हराने हर दिन।
सहमी सी ये धड़कने , हवा सी ये बातें ,
काले आतंक में बीतती हुई ये रातें।
इस चुप्पी के बीच आ ले चलूँ तुझे एक ऐसे मोड़ पर ,
जहाँ हैं उम्मीदों के ये पन्ने, आ ले चलूँ तुझे इस मोड़ पर।
सहमी सी ये हवाएँ , बीतती सी ये रातें ,
मकां के भीतर होती एक सी बातें।
सीख गई हंसना ये आंखे,
नमी के बीच आंखो देख नज़र मिलाती ये आंखे ।

|निर्भया|

आज तुझे इंसाफ दे दिया,
अब जब तू आयेगी एक नई दूनिया दी जायेगी,
'निर्भया' तू अबकी बार सच मे निर्भय होकर जी पायेगी।

ना कसने देगें तुझपे फब्तियां,
ना कोई नजर गंदी उठ पायेगी,
खौफ बना लो दिल मे एै दरिंदों,
नापाक इरादे जब-जब होंगे तेरे,
तुझको फांसी दी जायेगी।

एै माँ ओ सुन लो तुम,
ना बेटी को अपने बस 'गौरी' बनाना तुम,
उसको चंडी जैसा संहार सिखाना तुम,
आदिशक्ति का रुप है लेना,
दुष्टों से भिड़ जाना तुम।

होगा देश ना शर्मसार अब,
कहीं उठे उंगली भी जब बिंटिया रानी पर
बन के श्मशान के शंकर लड़ जाना तुम,
अपनी ही बेटी है या किसी और कि कही सोच मे ना पड़ जाना तुम।

निर्भया हमें तुम माफ करो
तुझको बचा न सके हम,
हो सके तो फिर से बेटी बन के आना तुम।

वो आएगा....

वो आएगा....
तुम्हें क्या- क्या समझाएगा...
शायद उसकी बातें हम में से,किसी को समझ नहीं आएगा..
वह कभी तुम्हें हिंदू ,तो कभी मुस्लिम बनाएगा
वह समाज का आईना तुमसे छुपाएगा.
हम में से शायद ही उस आईने को कोई ढूंढ पाएगा.
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा..
उसकी बातें हम में से किसी को समझ नहीं आएगा.....

चुनावी हवा में.
वो तुम्हें ऐसे- ऐसे ख्वाब दिखाएगा.
कभी बाबू , तो कभी भैया बनाएगा.
कभी हाथ , तो कभी गले लगाएगा
कभी लोग तो कभी लालच दिखाएगा
वह तुम्हें इस बात का बार-बार एहसास दिलाएगा
तुम हिंदू हो या कि मुस्लिम
या ऊंची जाति के या छोटी जाति के
हमारे तुम्हारे बीच वह एक ऐसा प्रचंड दिवार बनाएगा
जो कि सालों-साल तक टूट नहीं पाएगा
जब हम तुम सारे बट जाएंगे
तो उस दीवार को अपनी सीढ़ियां बनाएगा 
न जाने उस सीढ़ी से वह कहां पहुंच जाएगा 
उसके बाद, वो बरसाती मेंढक की तरह अगले बरसात में ही नजर आएगा..
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा......

फिर कहां गया हिंदू, मुस्लिम, छोटा ,बड़ा ,गरीब.
समाज का आईना तुम्हें यूं ही टूटा हुआ, बिखरा पड़ा समाज के हर मोड़ पर मिल जाएगा 
वह हिंदू मुस्लिम करने वाला 
हम गरीबों की बातें करने वाला विकास की बातें करने वाला 
वह बड़ी-बड़ी तकरीरवाला 
5 साल के लिए ऐसी शीत निंद्रा में जाएगा 
हमारे दुख-दर्द आवाज-चीखे शायद ही उसे जगा पायेगा.
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा.....

अब तो उसे उसकी आलीशान महल प्यारी है,
अब तो ऐसा लगता है जैसे उसकी कुछ नहीं जिम्मेदारी है,
अब विकास के नाम पर बस उसकी शीत निंद्रा ही प्यारी है,
अब कहां गया बाबू ,कहां गया भैया,अब तो उसके लिए सबसे बड़ा हो गया रुपैया.
यह बरसाती मेंढक अगले बरसात में फिर आएगा,इस बार नया जाल बुन कर लाएगा
 धोखे से हुए विकास को ,वह ढोल नगाड़े बजाकर सुनाएगा
इस बार वो ऐसा जहर लाएगा
जो कि हमारे भाई चारे में फिर से आग लगाएगा
5 साल पुरानी जख्मी फिर ताजा कर जाएगा
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा शायद उसकी बातें हम में से किसी को समझ नहीं आएगा

4 अप्रैल 2020

इश्क़ को तेरे आज बड़ी मुश्किल से भूलाया है ..
जाकर तुम, अब वापस  लौटकर मत आना।
जोड़ जोड़ कर खुद को मैंने वापस बनाया है...
आकर तुम,अब वापस मुझे मत मिटाना।
जब जरूरत थी तेरी, तुझे रोज ही पुकारा है.....
आकर तुम अब वापस अहसान मत दिखाना।
जब बिखरी थी,तो चलना खुद को सिखाया है....
आकर तुम अब वापस अपने हाथो को मत बढ़ाना।
जल रही थी आग में तो खुद को ही बुझाया है ...
आकर अब तुम वापस मेरी राख को मत उठाना ।
आंखो की वो सुझन को,जिसे बर्फ से  मिटाया है....
आकर तुम ,अब वापस उन आंखो को मत रुलाना ।
इश्क़ को तेरे आज बड़ी मुश्किल से भूलाया है ...
जाकर तुम, अब वापस लौटकर  मत आना।

वो आएगा....
तुम्हें क्या- क्या समझाएगा...
शायद उसकी बातें हम में से,किसी को समझ नहीं आएगा..
वह कभी तुम्हें हिंदू ,तो कभी मुस्लिम बनाएगा
वह समाज का आईना तुमसे छुपाएगा.
हम में से शायद ही उस आईने को कोई ढूंढ पाएगा.
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा..
उसकी बातें हम में से किसी को समझ नहीं आएगा.....
चुनावी हवा में.
वो तुम्हें ऐसे- ऐसे ख्वाब दिखाएगा.
कभी बाबू , तो कभी भैया बनाएगा.
कभी हाथ , तो कभी गले लगाएगा
कभी लोग तो कभी लालच दिखाएगा
वह तुम्हें इस बात का बार-बार एहसास दिलाएगा
तुम हिंदू हो या कि मुस्लिम
या ऊंची जाति के या छोटी जाति के
हमारे तुम्हारे बीच वह एक ऐसा प्रचंड दिवार बनाएगा
जो कि सालों-साल तक टूट नहीं पाएगा
जब हम तुम सारे बट जाएंगे
तो उस दीवार को अपनी सीढ़ियां बनाएगा 
न जाने उस सीढ़ी से वह कहां पहुंच जाएगा 
उसके बाद, वो बरसाती मेंढक की तरह अगले बरसात में ही नजर आएगा..
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा......
फिर कहां गया हिंदू, मुस्लिम, छोटा ,बड़ा ,गरीब.
समाज का आईना तुम्हें यूं ही टूटा हुआ, बिखरा पड़ा समाज के हर मोड़ पर मिल जाएगा 
वह हिंदू मुस्लिम करने वाला 
हम गरीबों की बातें करने वाला विकास की बातें करने वाला 
वह बड़ी-बड़ी तकरीरवाला 
5 साल के लिए ऐसी शीत निंद्रा में जाएगा 
हमारे दुख-दर्द आवाज-चीखे शायद ही उसे जगा पायेगा.
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा.....
अब तो उसे उसकी आलीशान महल प्यारी है,
अब तो ऐसा लगता है जैसे उसकी कुछ नहीं जिम्मेदारी है,
अब विकास के नाम पर बस उसकी शीत निंद्रा ही प्यारी है,
अब कहां गया बाबू ,कहां गया भैया,अब तो उसके लिए सबसे बड़ा हो गया रुपैया.
यह बरसाती मेंढक अगले बरसात में फिर आएगा,इस बार नया जाल बुन कर लाएगा
 धोखे से हुए विकास को ,वह ढोल नगाड़े बजाकर सुनाएगा
इस बार वो ऐसा जहर लाएगा
जो कि हमारे भाई चारे में फिर से आग लगाएगा
5 साल पुरानी जख्मी फिर ताजा कर जाएगा
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा शायद उसकी बातें हम में से किसी को समझ नहीं आएगा
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बुलाती है मगर जाने का नहीं,
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं
ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो
चले हो तो ठहर जाने का नहीं
सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं
वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नहीं

देख उदासी मेरी, हवा भी कुछ कहने लगी,इस क़दर तेरे बिना, सांसे मेरी ठहरने लगी,तुम तो ना आयी, इस दिल को देने दिलासा,अब तो मेरी रूह भी, मुझसे रूठने लगी..!!

8 मार्च 2020

Zakhm Ata Kar Do Na


Shubham Tripathi



Apni masroofiyat se waqt nikal kar, 
Mera ek Chota sa kaam kar do na...
Ek accha sa zakhm muze ata kar do na...
Pyaar ki ummed bas ummeed hi reh gai hai..
Judai bhi, teri yaden mehsoos nahi hone deti...
Dil tut  gaya hai.. Par bikhra nahi hai...
Lagta hai tu dur hai.. Par juda nhi hai...
Muze is kashmakash se azad kar do na..
Ek accha sa zakhm muze ata kar do na...


Main aaj bhi teri pehli nazar me kaid hun..
Muzpar ek nazar daal kar muze aazad kar do na...
Suna hai tum bahut sacche ho... Jhut nahi bolte...
To apne dil se bhi ek baar mera sach bol do na...
Thak gaya hu intezaar karte karte...
Aaoge bhi ya nhi... Kam se kam ye to bata do na...
Ek accha sa zakhm muze ata kar do na...

Aaj bhi jab bhi jheel kinare jata hu...
'Harf dar harf' yaad aati ho tum..
Tumhare huzur me yahan Jo nazme likhi thi...
Unki yadon me kho jata hu..
Yun to dunia ass pass hoti hai ..
Par tanha ho jata hu...
Aakar muze is tanhai se nikal do na...
Ek accha sa zakhm muze ata kar do na...

Ab to ye yakeen sa hone laga h ki tum nahi aaoge...
Ye zindagi shayad teri yadon ke sahare hi beetegi...
Waise tumne koi wafa ka wada kia bhi nhi tha...
Ye main hi kuch aur soch baitha...
Tum apni zindagi banane me mashroof rahi..
Main sarfira tumhe apni zindagi bana baitha...
Aakar ye parda hata do na..
Ek accha sa zakhm muze ata kar do na...

अपना कौन है

Shubham Tripathi


अपना कौन है इस जमाने मे ,
हर एक बुरा है किसी फ़साने मे ,

यू तो लोग है बहुत इस जहान मे पर...
सब लगे है जलते दीपक को बुझाने मे,

खुशी की कामना भी बेकार है,
सब तो लगे है दिल दुखाने मे ,

जब किसी के सुर ही खराब है 
तो क्या फायदा उसे गवाने मे ,

जो समझना ही नही चाह्ता ,
क्या फायदा उसे प्यार जताने मे ,

मोल इन्सान का नही पैसे का है ,
सभी लगे है गुलाबी नोट कमाने मे ,

शरीर अंदर से गन्दा है 
तो क्या फायदा नहाने मे ,

मोहित हो जाते है लोग झूठी शान देखकर ,
पर उम्र बीत जाती है इज्जत कमाने मे,

7 मार्च 2020

Zaroori To Nahi

Tum mujhe chahti ho...
Main tumhe chahta hun...
Hamare pyaar ki sacchai aur gehrai...
Hum dono bakhubi jante hai..
Par us pyaar ko jatane..
Roz baat ho...
...zaroori to nahi..

Mana ki jab hum pyaar me hote hai,
Har waqt unse baat karne ko man karta hai..
Baton me koi khas Matlab ho na ho...farak nahi padta..
Bas aawaz sunkar sukun aa jata hai..
Tumse baat karne mere paas waqt hai..
Par us waqt tum bhi free ho..
...zaroori to nahi.

Tumhari apni ek dunia hai.. Aur meri apni..
Tumhare apne kuch sapne hai.. Aur mere apne..
Ek rishte se ummeed hoti hai.. Ki wo apki takat bane kamzori nahi..
Mere lie to hamara rishta ek takat hai...
Par tere lie bhi ho...
...zaroori to nahi..

Muze ye ehsaas hai ... Ki tum ho.
Tumhe ye ehsaas hai ... Ki main hun..
Hamari zindagi rail ki un patriyon ki tarah hai,
Jo saath to hai..
Par ek nahi..
Tumhara apna naseeb hai..
Mera apna mukkaddar...
Hum dono apni zindagi me mashroof hai..
Is masroofiyat se.. Roz pyaar ke lie waqt mile..
....Zaroori to nahi..


Kehte hai yaad unhe kia jata hai jinhe bhool jao..
Tere saath bitaya har pal mere lie anmol hai..
Unka ehsaas har waqt saath rehta hai..
Bakhuda tu bhi us ehsaas se juda nahi ho pati hogi..
Sach me ek alag rishta hai, Tera aur mera..
Main yahan .... Tu wahan...
Meri apni zindagi... Teri apni..
Meri apni masroofiyat...  Teri apni...
Sukun hai ki ab bhi rishta kayam hai...
Bhule bisre kabhi baat ho jae...
Ya ki bas ye khabar mil jae...
"Wo thik hai"
Bas itna kaafi hai...
Par roz is pyaar ko jatane... Baat ho...
zaroori to nahi...

इजहार ए इश्क़



मोहोब्बत करने चला था में ये जमाने में,
खुशियां अपनी बर्बाद की उसे हसाने में..!!

बहुत जख्म सहे थे मैने उसे पाने के लिए,
मगर एक लम्हा भी ना लगा उसे गवाने में..!!

घर बार सब त्याग दिया उसे पाने के लिए,
एक पल भी न सोचा ये रिश्ता तुड़वाने में..!!

मेरा सब कुछ लुंट गया उसे पाने के लिए,
सारी जिंदगी गुजर गई उसे समझाने में..!!

छांव देकर खुद जल गया उसे पाने के लिए,
"आकाश" अब खुद बिखर गया उसे मनाने में..!!

ए हवा तु एक खबर ले जा


ए जाने वाली हवा मेरी एक खबर ले जा,
मेरे हर दर्द की, उसके पास लहर ले जा..!!

तुझे मैं अब कभी परेशान नहीं करूंगा,
मगर उसकी यादों की दो पहर ले जा..!!

मैं अब कभी लौट के आने वाला नहीं हू,
तु उसके दिमाग से मेरा सबर ले जा..!!

उसका दिन नहीं गुजरता कभी मेरे बिना,
तू उसके दिन में से कोई एक सहर ले जा..!!

कहीं अकेले सफर में, गर कुछ हो जाए मुझे,
पास उनके "आकाश" की ये कबर ले जा..!!

हमारे बीना तन्हा से है वो इस दुनिया में,
अगर हो सके तो उनके लिए हमसफ़र ले जा..!!

नया मोड जिन्दगी का

Shubham Tripathi poem on नया मोड जिन्दगी का


राही हुँ थोडा चलने पर एक नया मोड आ जाता है ,
हर मोड पर जिन्दगी का नया मखौल आ जाता है ,

पतझड आते ही वो हर टहनी का पत्ता झड़ जाता है ,
वक़्त पे अच्छे से अच्छे इन्सान का रुख मुड़ जाता है ,

कभी-कभी यू ही अनजाने मे भी दिल जुड़ जाता है ,
वो दिल ऐसे जुड जाता है ना कभी वो दूर जाता है,

सुन्दरता का क्या एक दिन सुरत का भी नूर जाता है ,
अक्श हो कैसा भी पर इन्सान फिर भी घुर जाता है ,

लगातर करे महनत वक़्त se कोई वो मशहूर हो जाता है 
ठुकराए जो वक़्त को उसी के हाथो मजबुर होजाता है,

एक बार ठोकर लगने पर इन्सान चतुर हो जाता है ,
कभी कभी एक जिन्दा इन्सान भी तस्व्वुर हो जाता है ,

वास्तविकता

Shubham

इश्क़, वादे-वफ़ा और प्यार क्या है
इज़हार-ए-मोहब्बत इक़रार क्या है

बाहरी रौनक पे मोहित है ज़माना
न जाना किसी ने वास्तविक निखार क्या है

कुकर्म करके यूँ नासमझ बने बैठे हैं लोग
जैसे  कोई  रेपिस्ट पूछे  बलात्कार क्या है

मर्दानगी दिखाते फ़िरते हैं बेबस लोगों पर
इससे बढ़कर मज़लूम का शिकार क्या है

कद्र उसी को है जिसको वो चीज़ ना मिली
किसी गूंगे से जा के पूछो पुकार क्या है

पल पल तड़पा है कोई आशियां बनाने में
कोई दौलतमंद क्या जाने इंतज़ार क्या है

लोगों ने बना रक्खा है आशिक़ी का मौसम भी
किसी सूखे लबों से पूछो सावन की बहार क्या है

ज़िन्दगी गुज़री है 'अम्बर' की रिश्ते गंवाने में
इससे भी बढ़कर भला कोई लाचार क्या है

इश्क़

इश्क़ में टूटा हूं इस क़दर
याद उसकी आती है पर messege कर नहीं सकता

बहुत दर्द मिला वादे वफ़ाओं से
ज़ख़्म हरे हैं, इतनी जल्दी भर नहीं सकता

टूट के बिखर कर मौन हो गया हूं
ख़ामोशी से बड़ा कोई कहर ला नहीं सकता

अब किस्सा ही ख़त्म कर इस कहानी का अपनी ज़ुबानी में
तेरे लफ़्ज़ों से ज़हर कोई ला नहीं सकता

कितने दर्द भरे हैं मेरे अल्फ़ाज़ों में
इन लबों का दर्द कोई सह नहीं सकता

यादों में पल पल तड़पता है दिल पर किसीसे कह नहीं सकता
रोने का इरादा हमारा भी मग़र पत्थर हुआ अश्क़ बह नही सकता

मेरी किस्मत ही अमावस की रात को लिखी गई
ग़म के लिये मुकद्दर बदल नहीं सकता

अब तो नज़रें भी नहीं मिलाते किसी नारी से
इतनी आसानी से मोम सा पिघल नहीं सकता

इश्क़ की जड़ जड़ तक बंजर हो चुकी
सूखा हुआ पेड़ कभी फल नहीं सकता

"वैनम" की आँखे भर आती है अम्बर देख
चाहता तो ये भी है, पर मन मुताबिक़ बरस नहीं सकता

पापा

Poem On Papa
I Love You Papa


आज कुछ पंक्तियाँ अपने पापा के लिये है कहना
करते है पयार हमसे इतना
जो न करे अपने आप से जितना

एक चिज़ माँगने पर दस चीज़े ला देना
हर हफते चॉकलेट्स लाकर चारों में बराबर प्यार बाटना

वो हम चारों को दो पाहियॉँ में गुमाना
और हर इक पल को यादो में संजोना

त्योहारो को अपने लिये सूना रख हमारे लिये खुशियों से भरना
दिवाली मे पटाखो   की फुलझड़ी और होली मे रंगो की बहार लाना

अपने बच्चों की उपलब्धियों पर
आपका सीना गर्व से फुल जान

कभी ना जिम्मेदारियों का बोज मुझ पर डालना
अपने सपनो को जिने की आजादी मुझे देना

गलति से भी कभी दिल दुखाया हो तो माफ़ करना

अंतिम में मुझे बस यही है कहना
हर सुख दुःख मैं सदा मेरे साथ रहना

कविता

सिर्फ कुंठाओ की अभिव्यक्ति नही है कविता
काम क्रीड़ाओं की आसक्ति नही है कविता

यह तो नक्काशी है असंतुलित हृदय की
पर भी सुगम सरस संतुलित है कविता

अक्षरशः जहां सरस्वती का वास हो
जिसमे कवि की हर एक श्वास हो

जो नग्न यथार्थ का दर्पण हो
जिसमे सत्य का दर्शन हो

जो श्रोता को मंत्रमुग्ध कर  दे
जो वक्ता का हृदय वर दे

जो तपोवन की उवर्शी हो
जो शकुंतला समदर्शी हो

जिसका हर शब्द कहे आओ
अमृत जलपान कराता हूँ

तुम्हारे अंतर्मन की उपज का
जन गण में ज्ञान कराता हूँ!

Mashroof

Abhi #masroof hu.. fir kabhi fursat me sochunga..
Ki tuze yaad rakhne me kya kya bhul Gaya..
Shayad hi Aisa koi pal guzra hoga..
Jisme zehan me tu nahi thi..
Deedon se to kabhi Deedar Kam hi hua tera..
Par SAR jhukaun to tu dikhti zaroor thi..
Isi bhulawe me ki tu hai.. Main bahut kuch kho Gaya..
Abhi masroof hu... Fir kabhi fursat me sochunga...
Ki tuze yaad rakhne me kya kya bhul Gaya..

Ajkal kuch Yun lagne Laga hai...
Tum nahi aaoge..
Yun to tumne mujhe kabhi dilasa bhi nahi Dia tha...
Main hi shayad kuch galat samajh gaya..
Move on.. to nahi kahunga
Par Haan.. ab tuze bhulane ki koshish hu kar Raha..
Abhi masroof hu... Fir kabhi fursat me sochunga..
Ki tuze yaad rakhne me kya kya bhul Gaya...

Tere kaabil tha ya nahi pata nahi..
Bas hamara saath mere lie ek fasaana ho Gaya...
Teri masroofiyat tuze Mubarak ho..
Teri zindagi tuze Mubarak ho..
Suna hai ki "yaad unhe karte hai jinhe bhul jaya karte hai"..
Aisa kabhi nhi ho sakta ki bhul jau tuze..
Koshish zaroor rahegi ki.. tuze pareshan na Karu...
Tu bas hamesha khush rehna...
Mera kya hai..
Abhi masroof hu... Fir kabhi fursat me sochunga...
Ki tuze yaad rakhne me kya kya bhul Gaya...

बचपन

वो बचपन मेरा सितारा सा था ,
घूमता मै जैसे आवारा सा था ,
वैसे तो पसंद थी मुझे बहुत चीजे 
पर टाफी के सिवा कुछ प्यारा ना था,

वो पतंग उडाते पर उडाना कहा आता था,
छत पर चड कर वो खुला आसमान हमे बुलाता था ,
चंचल होता था मन सब खिलौना हमे भाता था,
ज्यादा खाना भी कहाँ बस एक रोटी मै खाता था,

सपने थे ना जाने कितने कभी डॉक्टर तो कभी वकिल बन जाता था ,
तो कभी बैठ पापा की स्कूटर, मै piolet बन जाता था ,

रात मे थोडी आवाज होते ही भाग कर माँ के आचल मे छिप जाता था,
और जब कभी आती थी बारिश तो बिना कपड़ो के मै बारिश मै भीग जाता था ,

वो दिन अब एक कहानी मै समा गए ,
इस भिड़ मै ऐसे फसे हम अपने आप को भी भूला गए ,
जब याद आई बचपन की तो अपने आप आँखो मे आशू आ गए ,

कितना कुछ है कहना तुमसे

कितना कुछ है कहना तुमसे

आंखें नम हे मेरी
दिल में दर्द है मेरे
हां यार बहुत कुछ कहना है तुमसे
सांसे थम सी गई है
लहू रुख से गई है
हां यार बहुत कुछ कहना है तुमसे
कभी time हमें ना था
कभी time तुम्हें ना था
हम तो किताबों में खोए होते थे
लेकिन तुम कहां हां
यार कितना कुछ है कहना है तुमसे
इतना प्यार करता हूं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता
तुम्हारे बिना एक-एक पल मानो घंटों से लगते हैं
तुम्हारे बिना 1 दिन भी नहीं सकता है
हां यार कितना कुछ है कहना तुमसे
जीवन का एक ही सपना
जीना है तुम्हारे साथ
लड़ना पड़े तो लड़ लेंगे दुनिया से
बस तुम्हारा साथ चाहिए
मानो या ना मानो घरवाली तो मेरे ही बनोगी
हां यार कितना कुछ है कहना तुमसे

Maa

Pehle jab ghabrate tha..
Anchal mai tere chup jata tha..
Gazab si taqat aa jati thi
Jab tera hath mujhe sahlata tha..

Ghabrahat toh aaj bhi hoti hai
Par kisi ko nii batata hoon
Dar ko jebon mein chupa kar
Samajhdariya oodh so jata hoon

Jab dost mujhe rulate the
Tujhse mein sikayat lagwata tha
Fir teri godi mein sar rakh kar
Masoomiyat se so jata tha

Kabhi pyaar se tu mujhe samjhati thi
Meri galtiyan mujhe batati thi
Dusro ki dant se bachati thi kabhi
Kabhi khud dant lagati thi..

Dil toh aaj bhi dukta hai logo ke baato se
Par aansuon ko aakho hi mein rakhna seekh gaya hoon
Galtiyan toh aaj bhi karta hoon mai
Par galtiyo ko khud hi sambhalna seekh gaya hoon

Aaj bhi bhool jata  hoon chata le jana
Baarishon me aaj bhi bheeg jata hoon
Par ab tu chinta mat karna
Ab mein khud ka khayal rakhna seekh gaya hoon

Ab jab main tujhse miln aaunga
Sabki sikayat tujhse lagaunga
Tu sar par haath rakh dena phr se
Aur main phir se teri godi main sar rakh kar ke so jaaunga....

खुल के उङ जाने दो

खुल के उङ जाने दो  

मेरे जीने का हक मुझे वापस दे कर ! 
मेरी बंदिशो को इन कानुन की किताबों से दूर जाने दो ! 
मुझे कम-से-कम एक बार तो खुल के उंङ जाने दो ! 
माना मैं पंरिदा नंही पर मेरे जीने का हक मुझे वापस तो कर दो ! 
मेरी लाचारी का हिसांब मुझे भी दो दिखाओ ! 
अनजाने आशाओ के सागर में मुझे अपनी डुबती कस्ती को उस पार दो ले जाने दो ! 
बोला कितना मैने की मेरे हुजूर मुझे एक बार दो खुल के उङ जाने दो || 

तू काफी हद तक हू-ब-हू मुझ सा है

तू आईना सा है...
मेरे अक्स जैसा नहीं 
तू काफी हद तक हू-ब-हू मुझ सा है...

बस थोड़े से अन्तर के साथ 
जैसे दायें को बायां बता
और बायें को दायां बताने के बाद...

तुझमें उन बातों को पाया है ...
वो बातें जो रूबरू बस 
एक दर्पण बता पाया है...

मेरे मुस्कुराने पे, मैंने तेरी हंसी को देखा...
आंखों में आंसू जो आये मेरी
तेरी आंखों में भी अश्कों को पढ़ा...

तुझमें खुद के जैसी तकलीफों को पाया है...
मेरी खामोशियों को समझ 
सिर्फ तू ही उन्हें अल्फाज़ दे पाया है...

उजाले में तूने मेरा अक्स साफ दिखाया...
अंधेरों में उम्मीद की लौ को खुद से टकरा
मेरी राहों को रोशन बनाया...

दूसरों को राह दिखाने का हुनर तुझमें पाया है...
मैं खुद को अंधेरों से दूर ना कर सकी
पर तू मुझे अंधेरों से लड़ना सिखा पाया है...

कभी पानी के धब्बे तुझ पे भी देखे हैं...
तो कभी बिना गलती लोगों के
मेरे चरित्र पर लगाए दाग देखें हैं...

खुद को तेरे धब्बों को साफ करते पाया है...
चमकते ही तेरे, मैंने तुझको
मेरा अस्तित्व बेदाग दिखाते पाया है...

तेरे पीछे की चादर की खबर सबको ,पर दिखती नहीं...
वैसे ही मैं कहीं खुद में छुपी 
जो हूं असल में, मैं वो नज़र आती नहीं...

उस चादर की वजह से तू किसी की सूरत दिखा पाया है...
खुद को छुपाने की वजह से ही सबने
मुझे हर परिस्थिति में स्थिर पाया है...

हां मैं आज ही कह सकती हूं, कि
तू आईना सा है...
मेरे अक्स जैसा नहीं 
तू काफी हद तक हू-ब-हू मुझ सा है...

पँछी

इत्तू से पँछी में कितनी बड़ी जान है 
ले उड़ा वो मानव को उसके पंख कितने महान हैं 
उसके पंख कितने महान हैं 

इन्सान पर भारी पड़ रहा आज इंसान हैं 
नियति का खेल बड़ा महान है
पँछी बड़ा महान हैं 
ये पँछी बड़ा महान हैं 

जीवन भर जो कर्म किये मानव ने
 उनका ये परिणाम हैं 
ये पंछी बड़ा महान है

भाईचारे में मगन आज ये सारा जहान है 
ले उड़ा ये परिन्दा मानव को
जो बड़ा महान है

ये पक्षी कितना नादान हैं 
ले उड़ा जो मानव को
इसके पंख कितने महान है

जब तुम कुछ ना कर पाओ

तारों से भरे आसमां के नीचे;
जब जमी तुम्हे और पास खींचे,
तुम उठना चाहो, उसे छूना चाहो;
पर चाह कर भी कुछ ना कर पाओ।
तुम आगे बढ़ना चाहो;
लेकिन सब कुछ तुम्हे पीछे खींचे।
हताश तुम निराश तुम;
अब क्या करूं? तुम इसपे घबराओ,
चाह कर भी तुम कुछ ना कर पाओ।

याद

वो गांव की कच्ची राहें, आज भी तुझे याद करती है,
तुम छोड़कर चली गई, वो एक फरियाद करती है..!!

इन गावों की हरियाली में, तु भले साथ नहीं है,
मगर तेरी बीती मुलाकाते, आज आबाद करती है..!!

तेरे कदम इन राहों को, मंजिल का ठिकाना बताते थे,
ये राहें भी आज, तेरी खुशबू की रोज मुराद करती है..!!

में अकेला हो गया हूं, अब इन खेतों हरियाली में मगर,
तेरी खामोशी आज भी, हरवक्त एक सवांद करती है..!!

गांव की हवाएं कभी, तेरे होने का अहसास देती है,
तेरे नाम से एक पल मुझसे यूं अब विवाद करती है..!!

पैगाम पहोंचा दे ए हवा, 'आकाश' अब जी नहीं पाएगा,
गांव की गलियां नाम तेरा सुनकर अब इरशाद जो करती है..!!

मैं अब खामोश हूं

मैं अब खामोश हूं,
शायद इसलिए कि कुछ है नहीं कहने को
या शायद इसीलिए कि कोई है नहीं सुनने को

मैं अब खामोश हूं 
शायद इसलिए कि खुद से ज्यादा बात करने लगी हूं
या शायद इसीलिए कि महफिलों से दूर रहने लगी हूं

मैं अब खामोश हूं 
शायद इसलिए कि मुश्किल वक्त में कोई था नहीं
या शायद इसीलिए कि बुरा समय कभी आया ही नहीं

मैं अब खामोश हूं 
शायद इसलिए कि खिलखिला कर हंसने की वजह नहीं 
या शायद इसीलिए कि दिल ने हंसना चाहा हि नहीं

मैं अब खामोश हूं 
शायद इसलिए कि दर्द सहना सिख गई हूं
या शायद इसीलिए कि तकलीफों से हमेशा दूर रही हूं

मैं अब खामोश हूं
शायद इसलिए कि शांत रहने कि मुनासिब वजह मिली नहीं
 या शायद इसीलिए कि इतनी है कि मैंने हि कभी उन्हें सुना नहीं