वो गांव की कच्ची राहें, आज भी तुझे याद करती है,
तुम छोड़कर चली गई, वो एक फरियाद करती है..!!
इन गावों की हरियाली में, तु भले साथ नहीं है,
मगर तेरी बीती मुलाकाते, आज आबाद करती है..!!
तेरे कदम इन राहों को, मंजिल का ठिकाना बताते थे,
ये राहें भी आज, तेरी खुशबू की रोज मुराद करती है..!!
में अकेला हो गया हूं, अब इन खेतों हरियाली में मगर,
तेरी खामोशी आज भी, हरवक्त एक सवांद करती है..!!
गांव की हवाएं कभी, तेरे होने का अहसास देती है,
तेरे नाम से एक पल मुझसे यूं अब विवाद करती है..!!
पैगाम पहोंचा दे ए हवा, 'आकाश' अब जी नहीं पाएगा,
गांव की गलियां नाम तेरा सुनकर अब इरशाद जो करती है..!!
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें