7 मार्च 2020

कश्ती

वो कश्ती नजरों से ओझल हो गई,
जो तुफां से बचाने वाली थी ।

वो बात पन्नो में कहीं खो गई,
जो मुझे हंसाने वाली थी ।

पुल के पार वो शख्स दिखा नहीं,
जिसे जा के मैं गले लगाने वाली थी ।

वो लकिरें किसी और के हाथों पे पाई,
जिससे मैं अपनी हथेली सजाने वाली थी ।

उन खुशियों के फूल पेड़ पे आये हि नहीं,
जिनसे मैं अपना घर महकाने वाली थी ।

वो वजूद मेरा मुझमें हि दफ़न हो गया,
जिसे मैं उम्र भर जीने वाली थी ।

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