वो कश्ती नजरों से ओझल हो गई,
जो तुफां से बचाने वाली थी ।
वो बात पन्नो में कहीं खो गई,
जो मुझे हंसाने वाली थी ।
पुल के पार वो शख्स दिखा नहीं,
जिसे जा के मैं गले लगाने वाली थी ।
वो लकिरें किसी और के हाथों पे पाई,
जिससे मैं अपनी हथेली सजाने वाली थी ।
उन खुशियों के फूल पेड़ पे आये हि नहीं,
जिनसे मैं अपना घर महकाने वाली थी ।
वो वजूद मेरा मुझमें हि दफ़न हो गया,
जिसे मैं उम्र भर जीने वाली थी ।
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