लाख रंजिश हम दोनो के दरम्यान मे है
वही फरेबी शक्स, मगर मेरे ध्यान मे है
ये अलग बात के हम दोनो है जुदा जुदा
पर वही एक शक्स मेरे जिस्मो जान मे है
शिकायतें आज भी है हमें उससे हजारों
पर उसी शख्स का अक्स मेरे अरमान में है
अकेला वो हि तो इस दुनिया में बचा नहीं
पर बसता मेरा खुदा सिर्फ उसी इंसान में है
राबता वास्ता ना कोई सिलसिला लेकिन
वो हर्फ हर्फ लफ्ज लफ्ज मेरी दास्तान मे है
मेरे लिए वो शख्स कोई मायने नहीं रखता
मगर वही शख्स मेरे हर एक फ़सान मे है
मसीहा भी चोटी का सितमगर भी कमाल का
मेरे महबूब सा ना कोई इस —— जहान में है
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें