वो बचपन मेरा सितारा सा था ,
घूमता मै जैसे आवारा सा था ,
वैसे तो पसंद थी मुझे बहुत चीजे
पर टाफी के सिवा कुछ प्यारा ना था,
वो पतंग उडाते पर उडाना कहा आता था,
छत पर चड कर वो खुला आसमान हमे बुलाता था ,
चंचल होता था मन सब खिलौना हमे भाता था,
ज्यादा खाना भी कहाँ बस एक रोटी मै खाता था,
सपने थे ना जाने कितने कभी डॉक्टर तो कभी वकिल बन जाता था ,
तो कभी बैठ पापा की स्कूटर, मै piolet बन जाता था ,
रात मे थोडी आवाज होते ही भाग कर माँ के आचल मे छिप जाता था,
और जब कभी आती थी बारिश तो बिना कपड़ो के मै बारिश मै भीग जाता था ,
वो दिन अब एक कहानी मै समा गए ,
इस भिड़ मै ऐसे फसे हम अपने आप को भी भूला गए ,
जब याद आई बचपन की तो अपने आप आँखो मे आशू आ गए ,
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें