मैं अब खामोश हूं,
शायद इसलिए कि कुछ है नहीं कहने को
या शायद इसीलिए कि कोई है नहीं सुनने को
मैं अब खामोश हूं
शायद इसलिए कि खुद से ज्यादा बात करने लगी हूं
या शायद इसीलिए कि महफिलों से दूर रहने लगी हूं
मैं अब खामोश हूं
शायद इसलिए कि मुश्किल वक्त में कोई था नहीं
या शायद इसीलिए कि बुरा समय कभी आया ही नहीं
मैं अब खामोश हूं
शायद इसलिए कि खिलखिला कर हंसने की वजह नहीं
या शायद इसीलिए कि दिल ने हंसना चाहा हि नहीं
मैं अब खामोश हूं
शायद इसलिए कि दर्द सहना सिख गई हूं
या शायद इसीलिए कि तकलीफों से हमेशा दूर रही हूं
मैं अब खामोश हूं
शायद इसलिए कि शांत रहने कि मुनासिब वजह मिली नहीं
या शायद इसीलिए कि इतनी है कि मैंने हि कभी उन्हें सुना नहीं
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