जब हंस बने मन उड़ता है,
आशाओं के आकाश में
हर अदा नई सी लगती है,
जब प्रकृति के अंदाज़ में
जब धूप धुली सी लगती है ,
जब सूरज आंखे मलता है
जब ऋतु सांवरी सजती है,
जब मौसम रंग बदलता है
जीवन ये चलता है कैसे,
ये बसंत हमे सिखलाता है
ये कहता है हर वो पत्ता ,
जो पतझड़ में झड़ जाता है
कितनी भी सर्द हवाएं हों,
टेहने कितने भी सूखे हों
फिर से होगी शुरुआत नयी,
हर डाली को भर जाना है
एक दिन बसंत को आना है,
एक दिन बसंत को आना है....
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें