इश्क़, वादे-वफ़ा और प्यार क्या है
इज़हार-ए-मोहब्बत इक़रार क्या है
बाहरी रौनक पे मोहित है ज़माना
न जाना किसी ने वास्तविक निखार क्या है
कुकर्म करके यूँ नासमझ बने बैठे हैं लोग
जैसे कोई रेपिस्ट पूछे बलात्कार क्या है
मर्दानगी दिखाते फ़िरते हैं बेबस लोगों पर
इससे बढ़कर मज़लूम का शिकार क्या है
कद्र उसी को है जिसको वो चीज़ ना मिली
किसी गूंगे से जा के पूछो पुकार क्या है
पल पल तड़पा है कोई आशियां बनाने में
कोई दौलतमंद क्या जाने इंतज़ार क्या है
लोगों ने बना रक्खा है आशिक़ी का मौसम भी
किसी सूखे लबों से पूछो सावन की बहार क्या है
ज़िन्दगी गुज़री है 'अम्बर' की रिश्ते गंवाने में
इससे भी बढ़कर भला कोई लाचार क्या है
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