तू आईना सा है...
मेरे अक्स जैसा नहीं
तू काफी हद तक हू-ब-हू मुझ सा है...
बस थोड़े से अन्तर के साथ
जैसे दायें को बायां बता
और बायें को दायां बताने के बाद...
तुझमें उन बातों को पाया है ...
वो बातें जो रूबरू बस
एक दर्पण बता पाया है...
मेरे मुस्कुराने पे, मैंने तेरी हंसी को देखा...
आंखों में आंसू जो आये मेरी
तेरी आंखों में भी अश्कों को पढ़ा...
तुझमें खुद के जैसी तकलीफों को पाया है...
मेरी खामोशियों को समझ
सिर्फ तू ही उन्हें अल्फाज़ दे पाया है...
उजाले में तूने मेरा अक्स साफ दिखाया...
अंधेरों में उम्मीद की लौ को खुद से टकरा
मेरी राहों को रोशन बनाया...
दूसरों को राह दिखाने का हुनर तुझमें पाया है...
मैं खुद को अंधेरों से दूर ना कर सकी
पर तू मुझे अंधेरों से लड़ना सिखा पाया है...
कभी पानी के धब्बे तुझ पे भी देखे हैं...
तो कभी बिना गलती लोगों के
मेरे चरित्र पर लगाए दाग देखें हैं...
खुद को तेरे धब्बों को साफ करते पाया है...
चमकते ही तेरे, मैंने तुझको
मेरा अस्तित्व बेदाग दिखाते पाया है...
तेरे पीछे की चादर की खबर सबको ,पर दिखती नहीं...
वैसे ही मैं कहीं खुद में छुपी
जो हूं असल में, मैं वो नज़र आती नहीं...
उस चादर की वजह से तू किसी की सूरत दिखा पाया है...
खुद को छुपाने की वजह से ही सबने
मुझे हर परिस्थिति में स्थिर पाया है...
हां मैं आज ही कह सकती हूं, कि
तू आईना सा है...
मेरे अक्स जैसा नहीं
तू काफी हद तक हू-ब-हू मुझ सा है...
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