7 मार्च 2020

इश्क़

इश्क़ में टूटा हूं इस क़दर
याद उसकी आती है पर messege कर नहीं सकता

बहुत दर्द मिला वादे वफ़ाओं से
ज़ख़्म हरे हैं, इतनी जल्दी भर नहीं सकता

टूट के बिखर कर मौन हो गया हूं
ख़ामोशी से बड़ा कोई कहर ला नहीं सकता

अब किस्सा ही ख़त्म कर इस कहानी का अपनी ज़ुबानी में
तेरे लफ़्ज़ों से ज़हर कोई ला नहीं सकता

कितने दर्द भरे हैं मेरे अल्फ़ाज़ों में
इन लबों का दर्द कोई सह नहीं सकता

यादों में पल पल तड़पता है दिल पर किसीसे कह नहीं सकता
रोने का इरादा हमारा भी मग़र पत्थर हुआ अश्क़ बह नही सकता

मेरी किस्मत ही अमावस की रात को लिखी गई
ग़म के लिये मुकद्दर बदल नहीं सकता

अब तो नज़रें भी नहीं मिलाते किसी नारी से
इतनी आसानी से मोम सा पिघल नहीं सकता

इश्क़ की जड़ जड़ तक बंजर हो चुकी
सूखा हुआ पेड़ कभी फल नहीं सकता

"वैनम" की आँखे भर आती है अम्बर देख
चाहता तो ये भी है, पर मन मुताबिक़ बरस नहीं सकता

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