सिर्फ कुंठाओ की अभिव्यक्ति नही है कविता
काम क्रीड़ाओं की आसक्ति नही है कविता
यह तो नक्काशी है असंतुलित हृदय की
पर भी सुगम सरस संतुलित है कविता
अक्षरशः जहां सरस्वती का वास हो
जिसमे कवि की हर एक श्वास हो
जो नग्न यथार्थ का दर्पण हो
जिसमे सत्य का दर्शन हो
जो श्रोता को मंत्रमुग्ध कर दे
जो वक्ता का हृदय वर दे
जो तपोवन की उवर्शी हो
जो शकुंतला समदर्शी हो
जिसका हर शब्द कहे आओ
अमृत जलपान कराता हूँ
तुम्हारे अंतर्मन की उपज का
जन गण में ज्ञान कराता हूँ!
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