7 मार्च 2020

ऐ मर्द

आज तू जिस्म बदल कुछ लम्हों के लिए बस औरत बनदेखूँ खुद में कितनी शक्ति हैहै भाव जरा तो बतलाना तब ये औरत कैसे जीती है
है खेल बड़ा ये निराला ख़ुद को नज़रो में बहलानाजो काम हवस की अँगारेछलनी यौवन जब करती हैतब ये औरत कैसे जीती है
कल सीसे में वो जब सजी हुईआँखों में सुरमा मली हुईऔर राह पर होती जब उसकी हलचलन जानें कितने को मंज़र बनती हैतब ये औरत कैसे जीती है
क्षण पल में चूनर चुन जानाअस्मत के पल्लू फ़ट जानाहै नग्न जो यौवन खुली हुई कैसे है इसको बचके लानाजब फाड़ के भेड़िये हँसते हैंऔर कातिर नजरें चीरते हैतब खुद को तुम संभाल कभीसहसा पीछे से गिर जाती हैतब औरत कैसे जीती है
हो तंग गली में घर तेराजहाँ अँधेरो का हो बसेराजहाँ रौशनी भी कर्ज में गिरती हैखिड़की टूटी सी बजती हैकोई जान कर रास्ता रोके तबजहाँ रास्ते बंद हो जाती हैतब सोंच के दिल ये डरती हैकैसे अपनी अस्मत बचती है!?सोंचो वो औरत कैसे जीती है

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें