शाहिल के किनारों पर
बैठ के देखते रहे
लहरों के थपेड़ों से
ख़ुद को बाँटते रहे
बड़ा शौक़ था समंदर को
की कहीं डुबों न दे मुझे
पर उसके हौसले से
सीखने का हुनर दे मुझे
लहरें बार बार आती हैं
कुछ साथ रेत और ले जाती है
पैरों को भिगोती है
और फिर लौट जाती है
पर... जो रह गया उस जमीं पे
वो शिप दे मुझे
उसकी चमक से
आज कुछ सीखने का हूनर दे मुझे
दूर.. समंदर में बड़ा मातम है
कुछ लहरें उठते हैं
फ़िर उठ के गिर जाते हैं
लहरों की क़हर
जो शिल को दर्द दे जाते हैं
उसे हर बार सहने की
हिम्मत दे मुझे
आज कुछ सीखने का हुनर दे मुझे
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