इश्क़ को तेरे आज बड़ी मुश्किल से भूलाया है ..
जाकर तुम, अब वापस लौटकर मत आना।
जोड़ जोड़ कर खुद को मैंने वापस बनाया है...
आकर तुम,अब वापस मुझे मत मिटाना।
जब जरूरत थी तेरी, तुझे रोज ही पुकारा है.....
आकर तुम अब वापस अहसान मत दिखाना।
जब बिखरी थी,तो चलना खुद को सिखाया है....
आकर तुम अब वापस अपने हाथो को मत बढ़ाना।
जल रही थी आग में तो खुद को ही बुझाया है ...
आकर अब तुम वापस मेरी राख को मत उठाना ।
आंखो की वो सुझन को,जिसे बर्फ से मिटाया है....
आकर तुम ,अब वापस उन आंखो को मत रुलाना ।
इश्क़ को तेरे आज बड़ी मुश्किल से भूलाया है ...
जाकर तुम, अब वापस लौटकर मत आना।
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