4 अप्रैल 2020

वो आएगा....
तुम्हें क्या- क्या समझाएगा...
शायद उसकी बातें हम में से,किसी को समझ नहीं आएगा..
वह कभी तुम्हें हिंदू ,तो कभी मुस्लिम बनाएगा
वह समाज का आईना तुमसे छुपाएगा.
हम में से शायद ही उस आईने को कोई ढूंढ पाएगा.
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा..
उसकी बातें हम में से किसी को समझ नहीं आएगा.....
चुनावी हवा में.
वो तुम्हें ऐसे- ऐसे ख्वाब दिखाएगा.
कभी बाबू , तो कभी भैया बनाएगा.
कभी हाथ , तो कभी गले लगाएगा
कभी लोग तो कभी लालच दिखाएगा
वह तुम्हें इस बात का बार-बार एहसास दिलाएगा
तुम हिंदू हो या कि मुस्लिम
या ऊंची जाति के या छोटी जाति के
हमारे तुम्हारे बीच वह एक ऐसा प्रचंड दिवार बनाएगा
जो कि सालों-साल तक टूट नहीं पाएगा
जब हम तुम सारे बट जाएंगे
तो उस दीवार को अपनी सीढ़ियां बनाएगा 
न जाने उस सीढ़ी से वह कहां पहुंच जाएगा 
उसके बाद, वो बरसाती मेंढक की तरह अगले बरसात में ही नजर आएगा..
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा......
फिर कहां गया हिंदू, मुस्लिम, छोटा ,बड़ा ,गरीब.
समाज का आईना तुम्हें यूं ही टूटा हुआ, बिखरा पड़ा समाज के हर मोड़ पर मिल जाएगा 
वह हिंदू मुस्लिम करने वाला 
हम गरीबों की बातें करने वाला विकास की बातें करने वाला 
वह बड़ी-बड़ी तकरीरवाला 
5 साल के लिए ऐसी शीत निंद्रा में जाएगा 
हमारे दुख-दर्द आवाज-चीखे शायद ही उसे जगा पायेगा.
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा.....
अब तो उसे उसकी आलीशान महल प्यारी है,
अब तो ऐसा लगता है जैसे उसकी कुछ नहीं जिम्मेदारी है,
अब विकास के नाम पर बस उसकी शीत निंद्रा ही प्यारी है,
अब कहां गया बाबू ,कहां गया भैया,अब तो उसके लिए सबसे बड़ा हो गया रुपैया.
यह बरसाती मेंढक अगले बरसात में फिर आएगा,इस बार नया जाल बुन कर लाएगा
 धोखे से हुए विकास को ,वह ढोल नगाड़े बजाकर सुनाएगा
इस बार वो ऐसा जहर लाएगा
जो कि हमारे भाई चारे में फिर से आग लगाएगा
5 साल पुरानी जख्मी फिर ताजा कर जाएगा
वह आएगा तुम्हें क्या क्या समझाएगा शायद उसकी बातें हम में से किसी को समझ नहीं आएगा
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