"मेरा सफर अधूरा है"मोह नहीं तरु-छाया का,यह धूप भली अब लगती हैक्यों शांत करुं इस अग्नी को,यह भूख भली अब लगती है,भली है लगती यह तृष्णा,जिसके कारण हूँ जाग रहाभली है लगती हर विपदा,जिससे अब तक था भाग रहाहैं शूल भले ये पथ के सब, है भली ये निंदा हर पल कीहै धूल भली ये चेहरे पर, तकदीर लिखेगी जो कल कीअब भान हुआ निज गौरव का,अस्तित्व हुआ अब पूरा हैअभी ऋण है बाकी जीवन का,अभी मेरा सफर अधूरा है
1 सित॰ 2021
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